Healthy Eating – Part 3
क्या आप जानते हैं?
* सिर पर धूप लेने से बीपी हाई होता है और खुली पीठ पर धूप लेने से बीपी नॉर्मल।
* धूप से छाया में आते ही पानी पीने से शुगर लेवल एकदम बढ़ जाता है।
* चैत्र में नमक न खाने से चर्मरोग ठीक होते हैं।
* वैशाख में जौ (barley) खाने से किडनी ठीक होती है।
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सिर पर धूप लगने से BP high होता है, जबकि खुली पीठ पर धूप लेने से high BP normal हो जाता है।
गर्मियों में समय : सूर्योदय के 15 मिनिट बाद से सहन होने तक।
इसीलिए हमारी परम्पराओं में सिर को पगड़ी या पल्ले से ढककर रखा जाता था। उत्तरीय (दुपट्टा) व चोली से पीठ खुली रहती थी।
हमारा 90% आयुर्वेद पुस्तकों में नहीं, परम्पराओं में है।
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सिर पर धूप लगने से रक्तचाप के अलावा बाल सफेद होते हैं या गंजापन आता है….
इनसे बचने के लिए टोपी पहनें। हर दिन नाक में 3-4 बूँद देशी गाय का बिलौने का घी डालें।
* जंगल में औषधीय वनस्पतियाँ चरनेवाली देशी गाय के
* गोबर की अग्नि से गर्म किये गए दूध के दही को
* हाथ से मथकर निकाले गये
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धूप में निकलने से पहले प्यास न होने पर भी एक ग्लास पानी अवश्य पीयें। धूप में काम करते समय पानी पीते रहें, अच्छा है। लेकिन धूप से विश्राम के लिए छाया में आकर तुरंत पानी न पीयें, इससे आप सैकड़ों रोगों के शिकार हो सकते हैं।
यदि आप धूप से आये हैं, बहुत तेज प्यास लगी हो, रुक नहीं सकते तो पहले मिठाई, गुड़, बताशा…. खा लें, फिर पानी पीयें
या पहले मुँह में पूरा पानी भरकर फुला लें, उसे मुँह में अच्छी तरह घुमाकर 10-15 सेकंड बाद थूक दें। फिर ग्लास को मुँह लगाकर धीरे-धीरे पानी पीयें। ऊपर से गटागट पानी न पीयें। फ़्रिज का पानी न पीयें।
इसी तरह रसोई प्रारम्भ करने से पहले या भोजन बनाते समय पानी पीना ठीक है। भोजन बनाने के तुरंत बाद पानी पीना घातक है।
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छाछ खाली पेट नहीं पीना चाहिए, लेकिन पथरी होने पर कम से कम 21 दिन सुबह खड़े-खड़े खाली पेट छाछ पीयें। इसमें सेंधा नमक अवश्य मिलायें।
आधे घंटे बाद पुनर्नवा, पाषाणभेद (पत्थरचटा) जैसी सुलभ वनस्पतियों को गौमूत्र के साथ लेने से बड़ी से बड़ी पथरी भी गल जाती है।
पथरी होने पर दूध न पीयें। ककड़ी, टमाटर आदि न खायें या बीज हटाकर खायें।
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गर्म और सूखी जलवायु के लोग प्याज को आहार नहीं, औषधि के रूप में खा सकते हैं।
मुम्बई, कलकत्ता, चेन्नई जैसे नगरों में जहाँ हवा में नमी रहती है, प्याज खाने से गैस, एसिडिटी, पेट बढ़ना आदि समस्या होती है।
वर्षा व सर्दी के दिनों में प्याज के औषधीय गुण खत्म हो जाते हैं और वह रोग का घर बन जाता है।
*प्याज में बहुत से गुण हैं लेकिन एक विवेक रखें – यह औषधि है, आहार नहीं।
इसमें दो भयंकर दोष हैं, 1.यह मानसिक रोगों (जैसे डिप्रेशन) को बढ़ाता है। 2.यह तमोगुणी है।*
इसका भोजन में उपयोग न करें। प्याज को फोड़कर हथेलियों से दबाकर थोड़ा रस निकालकर तुरंत कच्चा ही खाना चाहिए; वह भी दोपहर को (शाम या रात को नहीं)। इसे काटना, छौंकना नहीं चाहिए।
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गर्मियों में प्रतिदिन सुबह-दोपहर के भोजन के साथ आधा-एक लीटर छाछ पीने से मोतियाबिंद (cataract), पथरी (gall bladder & kidney stones), पीलिया (jaundice), टायफाइड, आँव, कोलाइटिस नहीं होता। लू (sunstroke) नहीं लगती। इसमें सेंधा नमक, भूना हुआ जीरा डालने से गुण और बढ़ जाते हैं।
सावधानी :
छाछ 1. देशी गाय की हो।
2. मक्खन निकली हुई हो।
3. अधिक खट्टी न हो।
4. फ्रिज की ठंडी न हो।
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गर्मियों में हर दिन सुबह जौ की या एक वर्ष पुराने गेहूँ की बासी रोटी, देशी गाय की छाछ (बिलौने की मक्खन निकली हुई) में चूरकर खाने से High BP normal हो जाता है।
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मोटे लोगों को गर्मी अधिक लगती है। ठंडा पीने का मन करता है। ठंडा पीने से मोटापा बढ़ता है।
जो बचपन में पतले थे, बाद में मोटे हुए हैं। वे रोज 30-35 ग्राम देशी गाय के बिलौने का घी खायें (गाय का देशी घी नहीं) और ऊपर गरमागरम दूध, कढ़ी, सूप… पीयें। गर्मी कम लगेगी और तेजी से मोटापा घटेगा।
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शहर के लोगों के लिए Quality का अर्थ होता है – एक जैसा *Branded*.
लेकिन सत्य यह है कि नकली तो एक जैसा हो सकता है, प्राकृतिक नहीं।
जैसे कोई कहे कि आप कोई भी तरबूज (कलिंगड़) ले लें, एकदम लाल और मीठा निकलेगा, तो समझ लीजिए कि वह रंग व सेक्रीन के इंजेक्शन लगाये, तरबूज बेच रहा है।
प्रकृति की विविधता से जुड़ना विज्ञान है, Branded का craze मूर्खता है।
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गर्मियों में गुड़ न खायें। गुड़ का शर्बत पीयें। किसी भी प्रकार का इन्फेक्शन होने पर गुड़ न खायें (पीयें)। गुड़ की जगह देशी शक्कर का उपयोग करें। पित्त को नियंत्रित करने के लिए मिश्री का उपयोग करें।
20% लोग जहर से मरते हैं
*80% लोग अमृत से मरते हैं*
क्योंकि गलत समय पर खाया गया अमृत भी जहर का ही काम करता है।
इस ऋतु में लोगों को गाजर, गोभी, गुड़, तांबे के जल… के गुण बतानेवाले वास्तव में यह नहीं जानते कि वे अमृत के नाम पर विष का प्रचार कर रहे हैं। अधिकतर पदार्थों के गुण ऋतु अनुसार सीमित होते हैं जिनका ज्ञान भी आवश्यक है।
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8 डिग्री से ऊपर प्लास्टिक से बिस्फीनॉल-ए नाम का खतरनाक केमिकल निकलता है। प्लास्टिक में रखे पानी (भोजन) से हार्मोनल इमबेलेन्स होता है जिससे बचपन में जवानी के या विपरीत सेक्स के लक्षण पैदा होते हैं। समलैंगिकता का खतरा बढ़ता है।
मिट्टी की बोतल व अन्य बर्तनों का उपयोग करें।
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गर्मियों में फोड़े-फुंसी, पसीने की बास, खुजली, sun burn, नाक से खून निकलना, आलस, थकान, दर्द, बाल झड़ना, चिड़चिड़ापन … से बचने के लिए साबुन का नहीं, देशी गाय के गोबर की राख से बने अंगराग का उपयोग करें।
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गर्मियों में पित्त के रोगों (टायफाइड, पीलिया, चर्म रोग, पाइल्स…) से बचने के लिए तेल न खायें। *देशी गाय का बिलौने का घी* ही खायें या फिर नारियल का तेल (पैराशूट नहीं) खायें।
*Refined oil और “गाय का देशी घी” कभी न खायें।*
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आयुर्वेद के अनुसार
*जौ अन्न का राजा है।*
नया गेहूँ रोग का घर है।
गेहूँ हर दिन नहीं खाना चाहिए।
गेहूँ खेत को कमजोर करता है, जौ नहीं।
कमजोर खेत 👉कमजोर फसलें👉 कमजोर स्वास्थ्य
गर्मियों में गेहूँ की जगह जौ, ज्वारी खायें।
गेहूँ से बढ़ते रोगों को देख आजकल डॉक्टर जई (oats) खाने की सलाह देने लगे हैं। जई वास्तव में पशुओं का आहार है। कोई अनाज न मिलने पर इसे खाया जा सकता है। लेकिन ब्रेन वॉश होने के कारण लोग इसे बहुत महंगे दाम में खरीदते हैं। जई से जौ कई गुना श्रेष्ठ है। जौ खायें।
गर्मियों में कैंसर, डाइबिटीज़, कब्ज़, मोटापा, आलस, पित्त (गर्मी), किडनी आदि के रोगों से बचने के लिए जौ (barley) की रोटी व जौ का दलिया ही खायें।
– उत्तम माहेश्वरी