मेनिया यानि उन्माद: कब, क्यों, कैसे
खुशी या दुख का इजहार सामान्य हो तब तो ठीक है, लेकिन इसमें अचानक बढ़ोतरी हमारे मन में कई तरह के सवाल खड़ी करती है। गम या कोई और मनोदशा डिप्रेशन का कारण बनती है, लेकिन खुशी पर भी ध्यान देना जरूरी है कि कहीं यह हद से ज्यादा तो नहीं? यदि यह सामान्य से ज्यादा है तो मान लें कि यह मेनिया हो सकता है।
एक मानसिक स्थिति ऐसी भी है जो #डिप्रेशन की तरह खतरनाक है, लेकिन इसके बारे में कम ही बात होती है। इसे #Mania (मेनिया) या उन्माद कहा जाता है। मेनिया कई तरह का हो सकता है और इसके कई कारण हो सकते हैं। इसमें व्यक्ति बहुत ज्यादा खुश और उत्साह से भरा दिखता है, जबकि अंदर से वह टूटा हुआ होता है। वह अपनी हैसियत से बड़ी बातें करता है और वैसा ही दिखावा करने की कोशिश करता है। उसका व्यवहार सामान्य व्यक्ति जैसा नहीं रहता।
ऐसे व्यक्ति राह चलते लोगों से भी हंसते हुए, उत्साह से मिलते हैं। उनसे बात करने की कोशिश करते हैं। कोई उनकी तारीफ कर दे तो ऐसे व्यक्ति खुशी से फूले नहीं समाते। मगर, ये लोग आलोचना सहन नहीं कर पाते हैं और गुस्से से भर जाते हैं। ये अपने आगे किसी की बात नहीं सुनते और हर स्थिति में खुद को ही सही बताते हैं।
डिप्रेशन के उलट मेनिया में व्यक्ति बहुत बोलने लगता है। डिप्रेशन में सेक्स की इच्छा कम या खत्म हो जाती है, जबकि मेनिया में जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है। मेनिया के रोगी कभी-कभी बेहद खर्च करने को तैयार हो जाते हैं, कई बार वो अपने आप को बहुत बड़ा और धनी समझने लगते हैं। कुछ मामलों में इस उन्माद में व्यक्ति असामाजिक तक हो जाता है।
ऐसे पहचानें मेनिया के रोगी को
जब कोई व्यक्ति अचानक बहुत अलग तरीके के कपड़े पहनने लगे या पहनावे पर अचानक कुछ विशेष रूप से ध्यान देने लगे। अनजान लोगों से ज्यादा बातें करने लगे, मामूली बातों पर भी जरूरत से ज्यादा खुश हो जाए, या ज़रा सी आलोचना पर बुरी तरह से चीखने चिल्लाने लगे, तो समझा जाना चाहिए कि वह मेनिया का शिकार है। यह रोग धीरे-धीरे होता है और इसके कुछ लक्षण महीनों पहले से दिखाई देने लगते हैं।
ज्यादा खाने की इच्छा करना, काम में ज्यादा तत्परता दिखाना, नींद न आना और नींद की आवश्यकता भी महसूस नहीं होना, आदि इसके शुरुआती लक्षण हो सकते हैं और मानसिक भावों में बदलाव कुछ समय बाद दिखते हैं। इस रोग की गिरफ्त में आ रहा व्यक्ति भ्रम, काल्पनिक घटना या मिथ्या बातों को सच मानने लगता है। वह कभी भी चुप नहीं रहता है और क्रोध में भर जाता है। सायकायट्रिस्ट की मदद से दवाइयों से सही इलाज हो सकता है।
…इसलिए जरूरी है इलाज
कुछ मामलों मेनिया सीजनल यानी मौसमी होता है और व्यक्ति कुछ दिनों या महीनों के बाद सामान्य भी हो जाता है। इसे हाइपो मेनिया की श्रेणी में रखते हैं। मगर, कई मामलों में यदि समय पर उपचार नहीं मिले, तो व्यक्ति की यह परेशानी विकराल रूप ले लेती है। वह उन्माद में आकर नशीले पदार्थ लेने लगता है। मन की बात पूरी नहीं होने पर वह उग्र और हिंसक भी हो जाता है। आगे चलकर वह अवसाद से ग्रसित हो जाता है और उसकी स्थिति पहले से उल्टी हो जाती है। आत्महत्या या कई बार दूसरों की जान लेने की प्रवृत्ति भी हो जाती है।
असामान्य लक्षण दिखे, तो क्या करें
मेनिया से जूझ रहा व्यक्ति कभी यह मानने को तैयार नहीं होता कि वह मानसिक रूप से बीमार है, इसलिए वह इलाज के लिए नहीं जाता है। यदि किसी व्यक्ति में ऐसे असामान्य लक्षण दिख रहे हैं, तो उसके परिजनों को डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए और उसे समझाकर डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। कंसल्टेशन, मेडिटेशन और दवाओं से वह व्यक्ति पूरी तरह स्वस्थ होकर सामान्य जीवन जी सकता है।
हर व्यक्ति की मानसिक स्थिति अलग-अलग होती है। यदि मेनिया के लक्षण शुरुआती हैं, तो डॉक्टर से दो-चार बार परामर्श लेकर उनकी बताई बातों को मानकर/समझकर इस बीमारी को न सिर्फ बढ़ने से रोका जा सकता है, बल्कि खत्म भी किया जा सकता है। वहीं मेडिटेशन यानी ध्यान से भी इससे उबरा जा सकता है।
ऐसे मरीजों को सलाह दी जाती है कि वे कहीं जानी-आनजानी जगह जाएं, किसी दूसरी चीज पर ध्यान लगाएं। जैसे पार्क में कितनी चिड़िया पेड़ पर बैठी दिख रही हैं, क्या वे किसी पैटर्न को फॉलो कर रही हैं। यानी दिमाग के भटकाव को रोकना है और उसे शांत करना है। सबसे आखिर में दवाओं की जरूरत होती है। हर मरीज के हिसाब के दवाएं और उनका डोज़ अलग होता है। दवाओं के जरिए उसे नींद दिलाई जाती है, जिससे मस्तिष्क को शांति मिल सके।
– साभार डॉ अभिलाषा द्विवेदी