जब बीमार करे रसोई तो कैसे बचे कोई

एक आंकडे से बात प्रारम्भ करना चाहूंगा और वो आंकड़ा संसार के सबसे विकसित देश कहे जाने वाले अमेरिका के नागरिकों का है जहाँ के 98% लोगों के खून में PFC (Perfloronated Compounds) और PAC (Perfloro Alkyls Compounds) पाये गये हैं।

अब सवाल यह उठता है कि मानव रक्त में फ्लोरीन जैसी सबसे घातक गैस के अणु आये कहाँ से🤔❓❓❓

यह कहानी आज से मात्र अस्सी साल पहले शुरू होती है जब 1938 में DuPont कंपनी के लिए काम करते हुए ऐ Roy Plunkett ने टैफलोन की खोज की। टैफलोन एक अद्भुत पदार्थ है जोकि सामान्य तापमान पर बहुत ज्यादा स्थिर व अघर्षणशील है, जिसके अनेक उपयोग हैं।

यह पदार्थ सबसे पहले द्वितीय विश्वयुद्ध में परमाणु बम में यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड को सुरक्षित रखने के लिए प्रयोग में लिया गया था। सन् 1944 में इसी कंपनी ने इसका ट्रेडमार्क ले लिया था तथा इसके अनेक उत्पाद बनाने शुरु कर दिये।

सन् 1951 में कंपनी ने इसकी परत खाना पकाने के बर्तनों पर चढा कर नॉनस्टिक बर्तन बनाने की सोची। पर जब यह बर्तन गर्म किये गए तो उच्च तापमान पर यह जहरीली गैसें छोडने लगे तो कंपनी हिचक गयी तथा उसने इसके बर्तन बाजार में नहीं उतारे।

फिर 1954 में फ्रांस में इसका पेटेंट लिया गया तथा 1956 में Tefal नाम की कंपनी बनी व इस कंपनी ने इसका बर्तनों में प्रयोग इस चेतावनी के साथ शुरु किया कि ये बर्तन उच्च तापमान पर गर्म करने पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं।

उसके बाद तो फिर DuPont तथा अन्य कई कंपनियां भी धड़ाधड़ ये बर्तन बनाने लगी व धुआंधार तरीके से इन बर्तनों का प्रचार किया गया। कुछ समय में ही ये बर्तन तथाकथित सभ्य समाज की रसोईघर की शान बन गये।

सन् 1981 में एक अजीब घटना घटी जब इन बर्तन बनाने वाली एक कंपनी की सात गर्भवती महिलाओं में से दो ने असामान्य शिशुओं को जन्म दिया। उन महिलाओं के रक्त का परिक्षण करने पर उन के रक्त में Perflorootanoic acid (PFOA) की मात्रा पाई गई।

कंपनी ने फिर 50 युवा महिलाओं को PFOA कम करने के लिए नौकरी से निकाल दिया। सन् 2004 में स्थानीय पीने के पानी में यही PFOA के पाये जाने पर 343 मिलियन डॉलर का जुर्माना DuPont पर लगाया गया।

फिर Environmental Working Group ने जाँच की तो एक विस्तृत शोध के बाद पता चला कि चमन तो उजड़ चुका। 42 माताओं के दूध का परीक्षण किया गया तो सबके दूध में भी यही तत्व पाया गया। जो खबरों या लेखों पर विश्वास लिंक पढ़ कर करते हैं वो यह लिंक पढ़े👇

http://www.foodmatters.com/article/is-your-cookware-safe

क्योंकि रसोई में फ्लोरीन सिर्फ व सिर्फ नॉनस्टिक बर्तनों में ही होता है अतः मानव रक्त में यह इन्हीं बर्तनों से मिलता है। साथियों जब तक टैफलोन को गर्म नहीं किया जाता तब तक यह एक अत्यंत निष्क्रिय पदार्थ होता है पर जब हम इसे गर्म करते हैं तो इसका विघटन शुरू हो जाता है।

446°F यानि 230℃ तक यह सुरक्षित रहता है, इसके बाद यह अतिसूक्ष्म कण वातावरण में छोडता है जोकि हम आँखों से नहीं देख सकते। 680°F यानि 360℃ पर गर्म होने के बाद यह छः प्रकार की गैस छोड़ता है जिनमें से दो कैंसर कारक, चार सामान्य स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं तथा 1000°F यानि 538℃ के आसपास गर्म होने के बाद तो इससे फोसजीन से भी दस गुणा ज्यादा जहरीली perfloroisobutene गैस निकलती है।

टैफलोन से किस किस तापमान पर कितना जहर निकलता है इस के बारे में विस्तार से जानने वालों के लिए लिंक शेयर कर रहा हूँ👇

https://www.ewg.org/research/canaries-kitchen/teflon-offgas-studies

तो साथियों, अगर कोई भी गृहिणी या मानव इन के प्रभाव में आएगा तो फिर उसके तो राम जी भी रखवाले नहीं। वह तो बीमार होगा ही होगा। इन्हीं गैसों के सूंघने से अमेरिका के 98% नागरिकों के खून में यह जहर गया है।

आजकल ये बर्तन भारतीय बाजार व भारतीय जनता के बीच में भी अत्यंत लोकप्रिय हैं पर भारतीयों के लिए तो ये और भी ज्यादा घातक हैं। हम भारतीयों के लिए यह बर्तन और अधिक घातक क्यों हैं❓

अमेरिका में साठ प्रतिशत खाना बाजार में बनता है जिसमें से अधिकतर ब्रैड का हिस्सा सर्वाधिक होता है और ब्रैड ओवन में बनती है। पर हम भारतीयों का अधिकतर खाना अभी तक घर की रसोई में ही बनता है।

हमारे तो तवे भी नॉनस्टिक, पतीले भी नॉनस्टिक होते जा रहे हैं तो सोचो हमारे व हमारे परिवार के सभी हमारे प्रियजनों के रक्त में यह जहर कितना जल्दी फैलेगा❓

सबको पता है कि एल्युमिनियम के बर्तन में बना खाना एल्जाइमर करता है, एल्जाइमर मतलब याददाश्त खत्म। स्टील में बने बर्तन के खाने से निकिल धातु शरीर में प्रवेश करती है तथा टैफलोन का तो आप ने अभी अभी पढ़ा ही है।

फिर आप कहोगे कि कौनसे बर्तन में खाना बनाया जाए तो जवाब एक ही है और वो है हमें कुम्हार देवता की ही शरण में जाना पड़ेगा व जैसे टैफलोन से बने बर्तनों के मुँहमांगे दाम देते हो वैसे ही मिट्टी के बर्तनों के भी देने पडेंगे।

हमें लोहार देवता की शरण में भी जाना पड़ेगा तथा लोहे के तवे व कढाही भी लेनी पडेंगी। सब जानते हैं कि मिट्टी व लोहे के बर्तनों में बना खाना भोजन की गुणवत्ता कई गुणा बढाता है।

अब फैसला आपका, क्योंकि रसोई व बर्तन आपके। परिवार व स्वास्थ्य भी आपका।

– डॉ. शिव दर्शन मलिक

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