मथित, छच्छिका, और तक्र

हिन्दी का मट्ठा शब्द संस्कृत के ‘मथित’ शब्द से आया है। मट्ठे के लिए हिन्दी में ‘छाछ’, गुजराती में ‘છાશ’ (छाश) और मराठी में ‘ताक’ शब्द प्रचलित हैं। रसखान के एक अत्यन्त प्रसिद्ध सवैये के अन्त में ‘ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं’ ऐसा प्रयोग है।

हिन्दी का ‘छाछ’ और गुजराती का ‘છાશ’ (छाश) संस्कृत के ‘छच्छिका’ शब्द से आए हैं। मराठी का ‘ताक’ शब्द संस्कृत के ‘तक्र’ शब्द से आया है। आयुर्वेद के ग्रन्थों में छाछ के पाँच भेद कहे गए हैं—

१) मथित: दही की मलाई निकालकर बिना पानी डाले मथा गया पेय

२) घोल: दही में थोड़ा पानी डालकर मथा गया पेय

३) तक्र: तीन-चौथाई दही और एक-चौथाई पानी से बना पेय

४) उदश्वित्: आधी दही और आधे पानी से बना पेय

५) छच्छिका: अल्प दही और अधिक पानी से बना पेय

पाणिनि के समय सौराष्ट्र की नारियों में तक्र पेय प्रसिद्ध था इसका प्रमाण पाणिनीय शिक्षा का “यथा सौराष्ट्रिका नारी तक्रँ इत्यभिभाषते, एवं रङ्गाः प्रयोक्तव्याः खे अराँ इव खेदया” यह श्लोक है।

– नित्यानंद मिश्रा

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