शून्य मुद्रा क्यों और कैसे

मध्यमा अँगुली (बीच की अंगुली) को हथेलियों की ओर मोड़ते हुए अँगूठे से उसके प्रथम पोर को दबाते हुए बाकी की अँगुलियों को सीधा रखने से शून्य मुद्रा बनती हैं।

पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर एकाग्रचित्त होकर शून्य मुद्रा करने से अधिक लाभ होता है। शून्य मुद्रा को प्रतिदिन प्रातः व सायं 10-15 मिनट के लिए करना चाहिए।

भोजन करने के तुरंत पहले या बाद में शून्य मुद्रा न करें।

शून्य मुद्रा से होने वाले लाभ

1. शून्य मुद्रा के निरंतर अभ्यास से कान के रोग जैसे कान में दर्द, बहरापन, कान का बहना, कानों में अजीब-अजीब सी आवाजें आना आदि समाप्त हो जाते हैं। कान दर्द होने पर शून्य मुद्रा को मात्र 5 मिनट तक करने से दर्द में चमत्कारिक प्रभाव होता है।

2. शून्य मुद्रा गले के लगभग सभी रोगों में लाभकारी है।

3. शून्य मुद्रा थायराइड ग्रंथि के रोग दूर करती है।

4. शून्य मुद्रा शरीर के आलस्य को कम कर स्फूर्ति जगाती है।

5. शून्य मुद्रा को करने से मानसिक तनाव भी समाप्त हो जाता है।

6. शून्य मुद्रा के निरंतर अभ्यास से स्वाभाव में उन्मुक्तता आती है।

7. शून्य मुद्रा से एकाग्रचित्तता बढती है।

8. शून्य मुद्रा इच्छा शक्ति मजबूत बनाती है।

⁃ आनन्द आर्य

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