जब बीमार करे रसाई तो क्या करे कोई
अपने हाल के अमेरिकी दौरे पर मैनें कुछ ऐसा देखा कि मैं अन्दर तक हिल गया। मिशिगन के रोचेस्टर हिल नामक कस्बे से निष्काम जी के वारेन स्थित घर पहुंचा। निष्काम एक छब्बीस-सत्ताईस साल का युवा, वजन एक सौ बीस से एक सौ तीस किलो, चार पांच हेयर सैलून का मालिक, अच्छी खासी कमाई तथा मकान भी सुन्दर व सब आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण है।
वह मुझे अपने घर में वाईफाई का पासवर्ड देकर व सब कुछ दिखा, समझा कर व रसोई के सामान आदि बता कर, मुझे अपने घर छोड़ कर काम पर चला गया। कुछ देर बाद चाय बनाने के लिए मैं रसोई में घुसा तो मेरी आँखें फटी रह गईं।
साथियों, उस जवान की रसोई में सबसे आगे बाईस प्रकार की दवाइयां रखी थीं। अगर कोई छब्बीस-सत्ताईस साल की उम्र में ही बाईस प्रकार की दवा खाता हो तो उस युवा का फुटूरे (Future) तो फूट ही गया समझो। मैनें तत्काल इस विषय पर सोचना व उसकी रसोई व उसके खानपान पर ध्यान दिया तो कारण भी तुरंत ही समझ आ गया।
निष्काम भी आम सामान्य अमेरिकी नागरिकों की तरह ही सब कुछ बाजार से लाता है तथा उसका नब्बे प्रतिशत खाणा ब्रैडनुमा व डिब्बाबंद प्रिजर्वेटिव युक्त है जोकि वह शायद बचपन से ही खा रहा है।
भोजन को सुरक्षित मानव शुरू से ही रखता आया है तथा उसको सुरक्षित रखने के बहुत से प्राकृतिक तरीके भी हैं। फल व सब्जियों को सुखाकर व अचार, मुरब्बा डाल कर लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है तथा यह तरीका सदियों से चला आ रहा है।
समस्या तब आई जब प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्ध में कृत्रिम रसायन युक्त पैक्ड फूड एक मात्र विकल्प सामने आया। बिना लम्बे वैज्ञानिक परिक्षण के सभी युद्धरत व्यक्तियों को भोजन में ब्रैड व अन्य पैक्ड फूड खाने को दिये गए क्योंकि वही आपातकाल में एक मात्र भोजन था जो कि लम्बे समय तक खराब नहीं होता।
इसके बाद तो ब्रैड व अन्य पैक्ड फूड रसोई का व भोजन का एक आवश्यक हिस्सा सा बन गया तथा जाने अनजाने में हमारे स्टेटस से भी जुड़ गया। बाद में शोध हुआ तो पता चला कि पैक्ड फूड को खराब होने से बचाने वाले लगभग सभी प्रिजर्वेटिव मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत ही खतरनाक हैं।
पर तबतक यह हर किसी के पेट में पहुंच चुका था तथा आज भी धड़ल्ले से बाजार में बिक रहा है। इन प्रिजर्वेटिवस कि कोडिंग भी इस हिसाब से की गई है कि मुझ जैसा अणपढ़ तो क्या रासायनिक विज्ञान का महान से महान वैज्ञानिक भी ना समझ पाए।
इनके शुरू में E होता है अर्थात ये सब यूरोपियन यूनियन के देशों के मानकों व वहां के तापमान व जलवायु के अनुसार ही बनाए गए हैं पर आजकल ये विश्व के हर देश, हर भाग में समान रूप व समान मात्रा में ही मिलाये जाते हैं।
ये मुख्यतया तीन प्रकार के होते हैं:-
1. जो माईक्रोब्स को ना पनपने दे.।
2. यो एंजाइम्स को निष्क्रिय बनाएँ तथा…
3. जो फफूंद आदि की वृद्धि को रोकें।
यह सभी प्रकार के अप्राकृतिक प्रिजर्वेटिव एक धीमा जहर हैं तथा इनमें से कुछ तो कैंसरकारक भी हैं। मैं आपको कुछ प्रमुख प्रिजर्वेटिव्स् के नाम व उनसे हमारे स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान के बारे में जरूर बताना चाहूँगा।
Potassium & Calcium Sorbates, Sorbic Acid:- हाईपर सैंसिटिविटी व अस्थमा कारक हैं।
Benzoic Acid :- हाईपर सैंसिटिविटी व अस्थमा कारक है।
Sodium Benzoate:- हाईपर सैंसिटिविटी,अस्थमा व कैसंरकारक है।
Propylparaben:- अस्थमा कारक है।
Sulphur Dioxide:- हाईपर सैंसिटिविटी व अस्थमा कारक है।
Sodium Metabisulphite :- एस्थमा कारक है।
Potassium Bisulfite:- हाईपर सैंसिटिविटी व अस्थमा कारक हैं।
Hexamethylene Tetramine:- सिर्फ कैंसर करता है।
Sodium Nitrite:- हाईपर सैंसिटिविटी, अस्थमा व कैंसरकारक है।
Sodium or Potassium Nitrate:- हाईपर सैंसिटिविटी व कैंसरकारक हैं।
Calcium or Potassium or Sodium Propionates, Propionic Acid:- हाईपर सैंसिटिविटी व अस्थमाकारक हैं।
Propyl Gallate:- अस्थमा व कैंसरकारक है।
Tert Butylhydroquinone (TBHQ):- हाईपर सैंसिटिविटी व अस्थमा है।
Butylated Hydroxyanisole (BHA):- हाईपर सैंसिटिविटी, अस्थमा व कैंसरकारक है।
Butylated Hydroxytoluene (BHT):- हाईपर सैंसिटिविटी, अस्थमा व कैंसरकारक है।
एक विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित यह शोधपत्र भी अवश्य पढ़ें।
यह सब देखने व समझने के बाद मैंने कोई भी डिब्बाबंद या ब्रेड जनित भोजन नहीं किया तथा वहाँ गूगल की सहायता से एक भारतीय भोजनालय ढूंढा तथा मेरे पास कार न होने तथा वहाँ कोई सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था न होने के कारण छः किलोमीटर दूर पैदल ही खाना खाने गया। ये सब रासायन किसी न किसी मात्रा में हर पैक्ड फूड (थैली वाले दूध में भी) होते हैं।
अब आप स्वयं ही फैसला करें कि आपको यह सब खाकर व अपने परिवार को खिलाकर व कैंसर आदि तरह तरह बीमारियों से पीड़ित होकर पैक्ड फूड कंपनियों व डाक्टरों की आमदनी बढानी है या अपने फैमिली किसान से ताजा अन्न व दूध आदि खरीद कर स्वस्थ रहना है व किसानों को मुँहमांगे दाम देकर उनकी आमदनी बढानी है। ब्रैड का बेहतर विकल्प पास की बेकरी के बने बिस्कुट भी हैं। और सबसे अच्छा घर की रोटी, चाहे ताज़ी या बासी।
– डॉक्टर शिव दर्शन मलिक