मेरी सेहत मेरे हाथ
बीमारियों से बचना है तो जीवन को समझना होगा ।
हज़ारों वर्षों से भारतीय मनीषा हमें इस मानव जीवन के महत्व व ज़ीवेत शरद शतम के सिद्धांत को प्रतिपादित करती रही है ।
आज से ३० साल पहले खाँसी ज़ुकाम बुखार के मरीज़ आते थे । फिर एक दौर आया अस्थमा का । पिछले १०-१५ वर्षों में डाइअबीटीज़ कैन्सर, गुर्दे, जोड़ो के रोगों की भरमार रही ।
अब नया दौर सेरिब्रल पाल्सी या मूक-बधिर, डाउन सिंड्रोम, आॅटिज्म, मंद बु़द्धि आदि अनेक जन्मजात बीमारियों का चल रहा है l अब समय डिप्रेशन व बाइपोलर डिसॉर्डर और alziemers का भी आ गया है ।
चाँदी है तो डाक्टरों की ।
तथाकथित आधुनिक विज्ञान ने डराने के लिए बीमारियों के लम्बे लम्बे नाम व इलाज के नाम पर रसायनिको की भरमार करदी है ।
आजका इलाज रोगों के मैनज्मेंट के अलावा कुछ नहीं है ।
बस दवाई खाते रहिए , ठीक होने या दवामुक्त होने की बात मत करिए l शायद ही कोई दवा हो जिसके साइड इफ़ेक्ट्स ना हों ।
यदि आप ब्लड प्रेशर की दवा खा रहे हैं तो आधे लोगों को डाइअबीटीज़ होने की पूरी सम्भावना है ।
दर्द की दवाइयाँ घुटने या गुर्दे ख़राब कर सकती हैं l डाइअबीटीज़ का इलाज भविष्य में होने वाले डाइअबीटीज़ जनित nephropathy retinopathy से बचाने की कोई गारंटी नहीं है ।
जैसे यह कोई चिकित्सा ना होकर कोई इंडस्ट्री हो । डरा डरा कर कुछ और सोचने को भी पूरी तरह से रोका जा रहा है ।
लगभग २५० वर्ष पहले एक क्रांतिकारी डॉ हैनिमेन हुए उन्होंने कहा कि शरीर से पहले प्राणशक्ति रोगी होती है । और ईश्वर ने जैसे मनुष्य को प्राण शक्ति दी है ऐसी ही प्रत्येक वनस्पति अन्य जीवों व खनिज लवड़ों में भी दी है ।
उन्होंने प्राण ऊर्जा का ऊर्जा से इलाज करने की बात की और आज कितने होमेओपथिक चिकित्सक लोगों को रोग मुक्त कर रहे हैं ।
पातंजली के योग दर्शन का प्रथम सूत्र है- ‘योगः चित्त वृत्ति निरोधः’ अर्थात्- चित्त वृत्तियों का निरोध ही योग है। चित्त वृत्ति से तात्पर्य यहाँ चंचलता से है। संक्षेप में चंचलता के अवरोध को रोककर उसकी स्वेच्छाचारिता पर अंकुश लगाकर अभीष्ट प्रयोजन में निरत करने के अभ्यास को योगाभ्यास कहा जा सकता है और इच्छित स्वास्थ्य को सहजता से पाया जा सकता है ।
हमने पतंजलि का केवल योग व प्राणायाम पकड़ा बाक़ी नियोजन छोड़ दिया ।
पिछले दिनों मेरे पास एक बच्चा आया जिसके कान का सिस्टम ही नहीं बना था । बाहर कान था, अंदर मस्तिष्क था पर बीच की मशीन ग़ायब थी ।
वजह ढूँढ़ी तो पता चला कि होने वाले पिताजी होने वाली माताजी को बोलते थे कि अबॉर्शन करा लो दो दो बच्चों का क्या करेंगे । माँ बाप दोनों नौकरी करते थे । घरवालों के दबाब में गर्भपात तो नहीं कराया लेकिन पिताजी माँ के कान खाते रहे ।
अंदर बैठे बच्चे को लगा की रोज़ की तिक तिक से कान ही मत बनाओ । और ऐसे मूक बधिर बच्चे का इस दुनिया में पदार्पण हो गया ।
दो दिन पहले एक ऑटिस्टिक बच्चा आया । अकेले पिताजी आए थे पता चला तलाक़ की तय्यारी चल रही है ३ साल पहले एक और बच्चा प्लान कर लिया कि शायद सुलह हो जाए पर रार के चलते अंदर बैठे बच्चे ने सोचा ये अकल वाले तो लड़ते रहते हैं । चलो खाना पीना तो जानवरों के दिमाग़ ( Lower Brain) से चल सकता है Higher Brain विकसित ही मत करो । लो जी एक और ऑटिस्टिक बच्चे ने इन अक़्ल वालों की दुनिया में पदार्पण कर दिया ।
कैन्सर रोगियों के तो हर अंग के हिसाब से द्वन्द हैं ।
डाइअबीटीज़ का एक अलग कान्फ़्लिक्ट है ।
आप द्वन्द स्वयं ही समाप्त कर सकते हैं ।
अतः आपका स्वास्थ्य आपके हाथ में ही है ।
– डॉक्टर बी. एस. जौहरी
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